Janmashtami

Janmashtami

जीएँ तो जीएँ कैसे..?

यूँ तो जीने को लोग जिया करते हैं

लाभ नहीं जीवन का फिर भी लिया करते हैं..

मृत्यु से पहले भी मरते हैं हजारों लोग,

है ज़िंदगी उन्हीं की जो मर कर भी जिया करते हैं..

हमारे जीवन की सार्थकता और सफलता जीवन जीने की शैली और कला पर निर्भर करती है।

कैसे जीएँ कि जीवन अर्थपूर्ण हो इसके लिए एक आदर्श, एक गुरु की आवश्यकता होती है फिर चाहे वो हमारे परिजन हों, मित्र गण हों या कोई राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय या दैवीय चरित्र।

यदि हम ढूँढना चाहें तो हमें हमारे आस-पास ही अनेक प्रेरणादायी व्यक्तित्व मिल जाएंगे जो हमारे जीवन की नौका को सही दिशा दिखा सकते हैं। आवश्यकता जागरूक हो कर स्वयं इस दिशा में प्रयास करने की है। कहते भी हैं ढूँढना चाहें तो ईश्वर भी हमें मिल सकता है हमें तो केवल एक सच्चा दिग्दर्शक चाहिए।

अधिक दूर ना जा कर आइए आज बात करते हैं योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण की जिनका जीवन विद्यार्थी वर्ग के लिए ही नहीं अपितु समूचे मानव समाज के लिए दृष्टांतीय कहा जा सकता है। जानते हैं कि श्रीकृष्ण के जीवन से हमें सफल जीवन के क्या सूत्र सीखने को मिल सकते हैं।

समान शिक्षा आवश्यक है..

ग्रामप्रमुख के पुत्र होने के बाद भी कृष्ण ने साधारण बालकों की तरह संदीपनि के आश्रम में शिक्षा प्राप्त की, 64 कलाएँ सीखीं। इसलिए नहीं कि उन्हें उनकी आवश्यकता थी बल्कि इसलिए कि वे हमें स्वावलम्बी बनने की प्रेरणा दे सकें। सम्पूर्ण शिक्षा वही होती है जो हमारे व्यक्तित्व का रचनात्मक विकास करे, केवल पुस्तकीय ज्ञान को शिक्षा नहीं कहा जा सकता।

कोई कार्य छोटा नहीं होता..

नंद गाँव के गोप-ग्वालों के साथ गाय चराने जाना, गुरु कुल में समिधा (हवन की लकड़ियाँ) चुनने जाना श्रम के महत्त्व को तो दर्शाता ही है साथ ही यह भी सिखाता है कि कोई कार्य छोटा नहीं होता और हमें जीवन-यापन के लिए श्रम से भय नहीं होना चाहिए।

ग्वालों के साथ खेलना-खाना किसी भी प्रकार के भेदभाव-छुआछूत से बचने की शिक्षा देता है। कृष्ण के जीवन में सुदामा प्रसंग मित्रता के महत्त्व को बताता है कि मित्रता में निर्धन या धनवान जैसा कुछ नहीं होता।

कालिया मर्दन जैसे प्रसंगों से सामूहिक प्रयास और उत्तरदायित्व की भावना झलकती है। यमुना में गेंद कृष्ण ने गिराई तो वे स्वयं उसे निकालने गए अर्थात हमें हमारे द्वारा किए गए कार्यों के परिणाम का सामना करना आना चाहिए और समस्या का निराकरण करने को उद्यत होना चाहिए। निर्भीक हो यमुना में उतरना अर्थात् संकट में धैर्य नहीं खोना।

समूह की शक्ति अर्थात एक के लिए सब और सब के लिए एक यानि संगठन की बात भी गोवर्धन पर्वत उठाने के समय सामने आती है जब गाँव के सभी प्राणी पशुधन के साथ पर्वत के नीचे आश्रय लेते हैं।

प्रकृति के सम्मान में ही मनुष्य जाति की सुरक्षा है। पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता का पाठ भी पढ़ाता है श्रीकृष्ण का जीवन।

कृष्ण के जीवन से एक और बात जो हमें सीखने को मिलती है वो है अपने से छोटों, दूसरों की गलतियों को क्षमा करना और उन्हें सुधारने का प्रयास करना न कि उन्हें पकड़ कर बैठ जाना, निराश हो जाना।

परिस्थितियों के अनुसार स्वयं को ढालना भी एक महत्वपूर्ण गुरु मंत्र है जो कृष्ण के जीवन से हमें सीखने को मिलता है। नंदगाँव का नटखट, खिलंदड़ कन्हैया अन्याय का प्रतिकार करने के लिए मथुरा में कंस का काल बन जाता है, समय बदलने पर राधा का गोविंद सब मोह त्याग संसार भर के कल्याण को उद्यत अर्जुन का सारथी बन बैठता है।

कार्य छोटा हो या बड़ा मनमोहन कृष्ण प्रेरणा देते हैं अंतिम समय तक प्रयास करने की..

कृष्ण का एक रूप रणछोड़ का भी है जो कहता है कि धाराओं पर नियंत्रण न हो पाए तो हमें अपने जहाज की दिशाओं पर नये सिरे से कार्य करना चाहिए। आईआईटी, नीट आदि के लिए प्रयास आवश्यक है किंतु वही जीवन का अंतिम सत्य नहीं है तो हताश हो कर ईश्वर प्रदत्त इस जीवन की महत्ता को किंचितमात्र भी कम नहीं आँकना चाहिए क्योंकि सफलता के प्रतिमान काल और परिस्थिति अनुसार बदलते रहते हैं।

निराशा में हथियार डाल देना दुर्बल मानसिकता का परिचायक है। मधुसूदन श्री कृष्ण के अनुसार, प्रयत्न पूरा करें और लगातार करते रहें जब तक कार्य सिद्ध न हो जाए।

उनके अनुसार कार्य निष्पादन ही हमारे हाथ में है, सफलता-असफलता नहीं अतएव लक्ष्य निर्धारित कर प्रयत्न में जुट जाएँ। यदि प्रयास पूरा है तो परिणाम निस्संदेह सकारात्मक होगा। यही सोच श्रीकृष्ण को एक दूत बन कर शांति के अंतिम प्रयास के लिए हस्तिनापुर ले जाती है और युद्ध को अवश्यंभावी देख कर अर्जुन को लड़ने की प्रेरणा देती है।

कर्म और परिश्रम ही सफलता का मार्ग निर्धारित करते हैं इसलिए विद्यार्थियों को सफलता-असफलता का विचार त्याग परिश्रम-प्रयास करते रहना चाहिए।

समवयस्कों के प्रति स्नेह और बड़ों के लिए सम्मान भी श्रीकृष्ण का जीवन हमें सिखाता है।

निरपेक्ष भाव से कार्य करें और परिणाम प्रारब्ध के हाथ छोड़ दें सफलता अवश्य आपके चरण चूमेगी।

~ अक्षिणी

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