AN abode of literature
ABOUT THE LIBRARY
The school has spacious and enriched duplex library containing a wide range of books, CDs, periodicals and journals on literature, social science, business studies, science and technology as well as spiritualism and personality development. The second floor of the library contains a corner for verocious readers and the school holds D.E.A.R programme which is Drop Everything And Read. There is a wide variety of Encyclopedias available to fulfill the academic needs and curricular interest of the students. It provides Computing and Internet facility to Teachers and Students. Library also serves as a Resource Centre for teaching faculty.
Welcome
Dear Reading Enthusiast
Letter appeals to different people in different ways, for some it is like a nascent dew drop or an oasis in a land bereft of life.
Reading provides an insight into oneself.
About The Senior Librarian
Ms.Dipali Sharma (M.Lib, M.Phil)
Received Second prize in National Reading Month competition organized by P.N. Panicker Foundation in 2020 at National Level for her. Video Book-Bibliotherapy (https://youtu.be/T0t4g2cpBJM)
Recipient of: Master Moti Lal Sanghi Best Young Librarian Award in 2022
About The Primary Librarian
Ms. Aanchal Sharma (M.Lib)
“A room without books is like a body without a soul”
~Cicero
मेरे दिवास्वप्ननौ का मूर्त रूप, मेरी पहचान मेरा पुस्तकालय
वो बंद हैं तालों में। ……
पर मुझे तो देखती हैं चमकते शीशों के पीछे से रोज
उनके असंख्य साथी हैं ,जो उनके व्यक्तित्व को जानने के लिए एक हाथ बढ़ा उन्हें ले जाते हैं
कुछ खुशकिस्मत हैं उनका अस्तित्व उनके व्यक्तित्व से बढ़ा है,
कुछ उदास हैं उनके गहरे मोटे स्थूल शरीर को हाथ लगाने से सब अचकचाते हैं
कुछ आसमान पर हैं एक घूमती आकर्षण का केंद्र बनती धुरी पर उनका व्यक्तित्व जगमगा रहा है
कुछ उम्र के बोझ से बेदम पड़ी हैं ,वो निशब्द नहीं हैं पर अवहेलना के चाबुकों ने उनकी कमर तोड़ दी है
उनका पीलिया ग्रस्त शरीर ओर निस्तेज आवरण तुम्हारी आँखो मे वो चमक नहीं ला पाता।
वो अपनी कोठरी की दीवार से चिपकी खड़ी रहती हैं ,तुम्हे देखती हैं तुम आते हो मुंह फिराकर चले जाते हो,
उन्हें अपनी कोठरी से और प्यार हो जाता है
वो छोटे छोटे जीवों से दोस्ती कर लेती हैं ,उन पर विश्वास कर लेती हैं
वो नहीं जानती वो उसके शरीर को निगल जायेंगे पर तुमने उन्हें अपने मन से मुक्त कर दिया है, अब वो अपने शरीर से मुक्त होने की आस पाले हैं
अपनी बात कहने के लिए उन्होंने मुझे चुना है बांधा है अपने मोहपाश में
मेरे अंदर की कालिख को साफ़ कर अपने शब्दों की सफ़ेद लिखाई छापी है
मेरे दिमाग की नसों में खून की जगह अपनी स्याही बहाई है
मुझे अपना बंधक बनाकर बहुत खुश हैं
कभी मुझे कनखियों से देखती हैं कभी अधिकार से मेरे सामने आ जाती हैं
वो मूक होने का सिर्फ अभिनय करती हैं
मेरी जिह्वा की अमूकता ओढ़कर
अपनी निर्जीविता मेरे हाथों में छोड़कर मेरे शरीर की सजीवता पहनती है
ये मेरी किताबें हैं मेरे व्यक्तित्व का सबसे धवल हिस्सा।
~दिपाली शर्मा